शीशे की खिड़की के पीछे खड़ा हूँ
बीस फ़ीट की सड़क ही क्षितिज़ लगती है इस शहर में
सड़क पे कई पथिक हैं
कभी हम भी पथिक थे इस सड़क पे
कभी हम भी पथिक थे इस सड़क पे
दौड़ लगती थी वक़्त के साथ हमारी
वक़्त से आगे निकलने की होड़ में
कुछ गलतियां कर गए हम
कुछ गलतियाँ कर गए हम
और वक़्त आगे निकल गया हमसे
अब गुज़रता वक़्त देखना रोज़मर्रा हो गयी है
इस खिड़की के शीशे पे यादों का सनीमा दिखता है
सनिमे में वक़्त ने हमसफ़र बनाने का न्योता दिया था
हमने बेहतर वक़्त के लिए उस न्योते का मज़ाक बना दिया
फिर एक अज़ीब सी बात हुई
वक़्त के बदले यादें हमसफ़र बन गयी
और हम सनीमा देखते रहे
1 comment:
वक़्त के बदले यादें हमसफ़र बन गयी
और हम सनीमा देखते रहे ।
बहुत खूब।
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