Friday, February 4, 2011

हमारी मूलभूत जरूरतें !!

घरौंदे की तक़दीर यही है
बारिश उसे बहा देगी और
भूकंप उसे तोड़ देगा
मगर नेस्तनाबूद कर देती है उसे
पैसों की आँधी
कहीं ईंट सजती है किसी का घरौंदा नोच कर |

ईंट के चूल्हे में तिनकों की आग से
अधजले आलू हैं और
बाज़ार से खरीदी दो रोटी
एक भूखे पेट से इसका स्वाद पूछ लो
फिर भी बिरयानी फेंकी जाती है और
कहीं "स्फैगेटटी" सजती है किसी का पेट काट कर |

सर्द से सूख कर या धूप से जल कर
कपड़े से धागे की तरह चमड़ा निकलता है
हो सकता है मिल के 'केमिकल' के असर हो
मगर इस मृत चमड़े के स्पर्श से
घृणा होती है काल कोट को और
कहीं "वार्ड्रोब" सजती है किसी की चमड़ी उधेड़ कर ||