Monday, August 23, 2010

इन्साफ


इस चाँदनी में हम दोनों खड़े थे..
मगर हम रात के तरफ़दार नहीं थे |
माना चाँद हम दोनों की गवाही भी दे दे..
मगर इन फासलों की सुनवाई कौन करेगा ?
ख़ामोशी कभी सबूत नहीं बन सके..
रात के अँधेरे ने हर चश्मदीद को झुटला दिया |
मगर रात भर जागती आँखों ने नींद भरी एक निशानी छोड़ दी..
क्या ये रात कभी इन्साफ कर पाएगा??