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हर सिद्ध हो चुकी शिक्षा का
श्रेय बाज़ार में बिकता है
पहले तो गुरु आदर्श था
आज उसका भी मोल लगता है
समाज तो नसीहत बांटता आया है
मगर consultancy के नाम पे
आज वहाँ भी दुकान लगती है
गुरु और गोपाल दोनों खड़े हो तो
गोपाल को ही प्रणाम कर लो
मंदिर के पट हर किसी के लिए खुलते हैं
मगर private schools के सामने देखो
एक गरीब का बच्चा दरवाजे तक ही रह जाता है
विद्वानों के जमघट में
जिसे हम यूनिवर्सिटी कहते हैं
पैसों की धांधली चलती है
कुछ यूनिवर्सिटी में तो वैसे ही
पैसों पे डिग्री बिकता है
विद्या के मंदिर के बीच ज्येष्टता निकलना अनुचित है
मंदिर तो भक्ति से बनती है
मगर पैसों की ताकत से देखो- अख़बार के पन्नों में
रैंकिंग में IIPM भी IIM से भी ऊपर दिखाया जाता है
स्वेटर बुन रही होती कोई सिक्षादात्री
कहीं शिक्षक सड़क पे हड़ताल पे होते हैं महीनों से
निर्लज्ज होकर ज्ञान के मंदिर में छल हो रहा होता है
सरकारी स्कूलों में ज्ञान के पुजारी
खुद ही दीप की लौ बुझा कर समाज को विकृत कर रहा होता है
क्या समझायें उस अबोध को
उसे तो child labour का मतलब भी समझ नहीं आता है
© Jai
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P.S. -
समाज यह तो सिखाता है कि मेहनत से ही इस दुनिया में सफलता मिलती है | मगर जिंदगी कुछ और भी सिखा जाती है | जिंदगी उन रास्तों के बारे में बता जाती है जो किताब के पन्नों में नहीं मिलते | मगर जिंदगी ये नहीं बताती की कौन सा रास्ता सही है और कौन सा गलत | सही और गलत का फैसला समाज करता है | अतः मोटे तौर पे यह कहा जा सकता है कि हमारे समाज, शिक्षक और शिक्षा निति की जिम्मेदारी बनती है की हर व्यक्ति को सही और गलत में अंतर पता हो |
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