Saturday, October 13, 2007

उन यादों को पलट कर देखता हूँ तो पटल पर आकृतियाँ उभर आती हैं. उनको समेटने की कोशिश करता हूँ तो अंगुलियों के बीच से निकल कर मुझ से दूर चली जाती हैं. छूने की कोशिश करता हूँ तो ज्ञात होता है की वहाँ कुछ नहीं बचा, सब टूट चुका है. उन संजीदा पलों से उम्मीद न थी को इतनी बेरुखी से पेश आयेंगी, वक़्त के साथ इतनी बदल जाएँगी.


शायद यही जिंदगी और वक़्त का रिश्ता है.

2 comments:

Unknown said...

yaar bhot hi acha likhte ho ..kash me aapka dost hota..meh shayad aapki zindgi me ahmiyat nhi rkhata hu par aapko ab meh bhul to nhi sakta ...
aur kisi se n itna sharmata tha par .
uske samne aate hi sir khud b kud zukjaata tha.
u niceeee .. please reply zaroor karna ...
byeeeeeee

Jai Kumar said...

@sabs
thnx jo tumne itni jagah di hai mujhe apni jindagi mein. i m unable to open ur profile. isliye mein tumhein yahin reply kar raha hoon.
tc n byeeeeee